सनातन बोर्ड एक वैचारिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संगठन है, जिसका उद्देश्य सनातन धर्म की मूल शिक्षाओं, परंपराओं और जीवनमूल्यों का संरक्षण, संवर्धन और प्रचार-प्रसार करना है। यह बोर्ड उन सभी व्यक्तियों का सामूहिक मंच है जो सनातन धर्म के गौरवशाली इतिहास, इसकी सार्वकालिक उपयोगिता और इसकी विश्वशांति में भूमिका को समझते हैं, और इसे आने वाली पीढ़ियों तक सशक्त रूप में पहुँचाने के लिए समर्पित हैं। सनातन धर्म केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है, जो ब्रह्मांडीय संतुलन, करुणा, धर्म, सत्य और आत्मा के शुद्धिकरण पर आधारित है। यही शाश्वत परंपरा हमारी संस्कृति की नींव है, और उसी की पुनर्स्थापना के लिए सनातन बोर्ड कार्यरत है।
इस बोर्ड की स्थापना किसी एक व्यक्ति, संस्था या संगठन के लिए नहीं की गई है, बल्कि यह प्रत्येक उस व्यक्ति की अभिव्यक्ति है जो अपने धर्म, अपने पूर्वजों की संस्कृति और अपनी पहचान से प्रेम करता है। यह संस्था एक जन-आंदोलन है, जो मंदिरों, आश्रमों, गौशालाओं, धार्मिक गुरुकुलों और सामाजिक संस्थाओं को एकसूत्र में बाँधकर उन्हें एक साझा मंच पर लाना चाहती है, जिससे धर्मनिष्ठ कार्य अधिक संगठित, पारदर्शी और प्रभावी रूप से आगे बढ़ सकें।
सनातन बोर्ड धार्मिक शिक्षा, संस्कार निर्माण, वेद-शास्त्रों का आधुनिक रूपांतरण, योग-ध्यान, आयुर्वेद, वैदिक विज्ञान, पर्यावरण-संरक्षण, और आत्मनिर्भर भारत जैसे विषयों को अपने कार्य का अभिन्न हिस्सा मानता है। यह संस्था यह मानती है कि जब तक सनातन विचारधारा को व्यवहारिक जीवन में, शिक्षा में, आचार में और व्यवहार में स्थान नहीं मिलेगा, तब तक समाज में सच्चा परिवर्तन संभव नहीं है। इसी सोच के साथ यह बोर्ड युवाओं को जोड़ने, महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने, और ग्रामीण क्षेत्रों तक आध्यात्मिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक चेतना पहुँचाने का कार्य कर रहा है।
सनातन बोर्ड का वैश्विक दृष्टिकोण है। यह न केवल भारत में, बल्कि विश्व के हर उस कोने तक पहुँचना चाहता है जहाँ कोई सनातन आत्मा बसती है। इसके लिए एक संगठित सदस्यता अभियान चलाया गया है, जिसमें देश-विदेश के श्रद्धालु, धर्मप्रेमी, आचार्य, गुरु, संत, विद्वान, साधक, युवा और मातृशक्ति जुड़ रहे हैं। प्रत्येक सदस्य को एक प्रमाणित सनातन सदस्यता प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है, जो न केवल उनके योगदान का प्रमाण है, बल्कि उनके धर्म के प्रति कर्तव्यबोध और गौरव का प्रतीक भी है।
यह संस्था किसी जाति, भाषा, प्रदेश या पंथ से सीमित नहीं है, बल्कि यह समस्त सनातनियों का साझा मंच है, जिसमें एकता, समानता, सहयोग और धर्म की भावना सर्वोपरि है। हमारा विश्वास है कि सनातन धर्म के माध्यम से ही विश्व में पुनः शांति, संतुलन और सद्भाव स्थापित किया जा सकता है। इस दिशा में, हम नित्यप्रति अपने प्रयासों को गति दे रहे हैं — ताकि भारत ही नहीं, संपूर्ण विश्व में सनातन धर्म का स्वर पुनः गुंजायमान हो और हर आत्मा अपने मूल की ओर लौटे।
जो व्यक्ति इस दिव्य यात्रा का भाग बनना चाहते हैं, उनके लिए यह बोर्ड न केवल एक संगठन है, बल्कि एक आध्यात्मिक परिवार है — जो उन्हें ज्ञान, संस्कार, दिशा और समर्पण की ऊर्जा प्रदान करता है। यही सनातन बोर्ड का मूल भाव है: धर्म से जुड़ो, संस्कृति को जीवित रखो, और विश्व को अध्यात्म की ज्योति से आलोकित करो।
हमारा लक्ष्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहाँ जीवन की प्रत्येक गतिविधि—चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामाजिक, आर्थिक हो या शैक्षणिक, पारिवारिक हो या राजनीतिक—धर्म, ज्ञान, सेवा और सदाचार के मूल स्तंभों पर आधारित हो। हम एक ऐसे राष्ट्र और विश्व की कल्पना करते हैं जहाँ व्यक्ति का विकास केवल भौतिक उन्नति तक सीमित न होकर आत्मिक प्रगति तक विस्तारित हो; जहाँ शिक्षा केवल नौकरी का माध्यम न होकर चरित्र निर्माण और जीवन के गूढ़ सत्य की खोज का साधन हो; जहाँ सेवा केवल सामाजिक दायित्व नहीं बल्कि आत्म-तृप्ति और करुणा का भाव बन जाए।
हम ऐसा वातावरण तैयार करना चाहते हैं जहाँ धर्म का आशय केवल पूजा-पद्धतियों तक सीमित न रहे, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के आचरण, व्यवहार और निर्णयों में वह आत्मस्थ हो। जहाँ ज्ञान केवल सूचनाओं का संग्रह न होकर विवेक, विनम्रता और दूरदर्शिता का स्रोत बने। जहाँ सेवा दूसरों की सहायता भर नहीं, बल्कि अपने कर्तव्य की पूर्ति और आत्मा की शुद्धि का मार्ग हो। जहाँ सदाचार किसी परंपरा का बोझ नहीं, बल्कि जीवन की सहज वृत्ति बन जाए।
सनातन बोर्ड इसी उद्देश्य को लेकर कार्य कर रहा है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में धर्म को आस्था के साथ-साथ आचरण का विषय माने, ज्ञान को केवल पाठ्यपुस्तकों तक न रखकर आत्मा के विकास का माध्यम बनाए, सेवा को स्वार्थ से ऊपर उठकर समर्पण की अनुभूति में बदले, और सदाचार को बाहरी अनुशासन नहीं बल्कि आंतरिक चेतना से जोड़ दे।
हम ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते हैं जहाँ वृद्ध सम्मानित हों, युवा प्रेरित हों, बालक संस्कारित हों और नारी शक्तिस्वरूपा मानी जाए। जहाँ पर्यावरण की रक्षा को धर्म का अंग माना जाए, गौ-सेवा और वन-संरक्षण को पुण्य का कार्य माना जाए। जहाँ हर मंदिर केवल पूजा का स्थल नहीं बल्कि संस्कृति, शिक्षा और सामाजिक उत्थान का केंद्र बने। जहाँ विज्ञान और आध्यात्म, परंपरा और प्रौद्योगिकी, दोनों साथ चलें और मानव जीवन को संतुलित, समृद्ध और शांतिमय बनाएं।
यही सनातन बोर्ड का दूरदर्शी और व्यापक लक्ष्य है—एक ऐसा सनातन समाज जिसमें व्यक्ति का प्रत्येक कर्म धर्ममय हो, उसकी दृष्टि ज्ञानमय हो, उसका हृदय सेवा से परिपूर्ण हो और उसका जीवन संपूर्ण रूप से सदाचारी हो।
सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु संगठित प्रयास करना, सनातन बोर्ड की मूल प्रतिबद्धता है। यह प्रयास केवल भाषणों या लेखों तक सीमित नहीं है, बल्कि धरातल पर सक्रिय योजनाओं, अभियानोें और जागरण की प्रक्रिया के माध्यम से समाज के हर वर्ग को जोड़ने का प्रयास है। हमारा उद्देश्य है कि सनातन धर्म केवल ग्रंथों तक सीमित न रह जाए, बल्कि जन-जन के आचरण, विचार और जीवनचर्या में उतर आए।
* वेद, गीता, पुराण, उपनिषद जैसे महान ग्रंथों को सरल, स्पष्ट और आधुनिक संदर्भों के साथ समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाना हमारी प्राथमिकता है। हम चाहते हैं कि ये ज्ञान के अमूल्य भंडार केवल विद्वानों तक सीमित न रहें, बल्कि एक सामान्य गृहस्थ, एक छात्र, एक किसान, एक महिला तक भी उसकी भाषा और समझ के अनुसार पहुँचे और जीवन को दिशा दे।
* धर्म, संस्कार और वैदिक ज्ञान आधारित शिक्षा पद्धति को प्रोत्साहित करने का हमारा उद्देश्य एक ऐसी नई पीढ़ी का निर्माण करना है जो केवल तकनीकी या पश्चिमी शिक्षा से लैस न हो, बल्कि भारतीयता, नैतिकता और आत्मचेतना से भी संपन्न हो। गुरुकुलों की परंपरा, यज्ञ, ध्यान, वेदपाठ, व्यवहारिक धर्मशिक्षा आदि को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में एकीकृत कर हम बालकों के भीतर श्रद्धा, शिष्टाचार, चरित्र और विवेक को जागृत करना चाहते हैं।
* हर गाँव, हर शहर में एक धार्मिक चेतना केंद्र की स्थापना, जो केवल उपासना का स्थल न हो बल्कि ज्ञान, साधना, संस्कार, सामाजिक संवाद और सेवा का केंद्र बने — इसी विचार के साथ हम पूरे देश और विश्व में सनातन केंद्रों का निर्माण करना चाहते हैं। ये केंद्र न केवल धार्मिक जागरूकता फैलाएँगे बल्कि समाज के लिए एकता, सहकार और स्वावलंबन का भाव भी उत्पन्न करेंगे।
* धार्मिक स्थलों, मंदिरों और आश्रमों का संरक्षण व संचालन एक आवश्यक कर्तव्य है जिसे हम पूरी निष्ठा से निभाना चाहते हैं। अनेकों मंदिर उपेक्षित अवस्था में हैं, कई धार्मिक स्थल आधुनिकता की आंधी में विलुप्त हो रहे हैं, कई आश्रम दिशाहीन हो चुके हैं — इन्हें फिर से जीवित करना, उनकी गरिमा लौटाना, उन्हें समाज से जोड़ना और उन्हें धर्म, सेवा व संस्कृति के केंद्र बनाना सनातन बोर्ड का प्रमुख कार्य है।
* संतों और विद्वानों के मार्गदर्शन में धर्म संवाद व साधना कार्यक्रम आयोजित कर हम ज्ञान की धारा को पुनः जीवित करना चाहते हैं। आज के युग में जब भ्रम, संशय और पाखंड बढ़ रहे हैं, वहाँ एक सशक्त मार्गदर्शन की आवश्यकता है। हमारे संत, आचार्य और वेदज्ञ विद्वान इस कार्य में प्रकाशपुंज बन सकते हैं। उनके माध्यम से हम समाज में सत्य का संचार, साधना का मार्गदर्शन और धर्म के सही स्वरूप को प्रस्तुत करना चाहते हैं।
इन सभी कार्यों के माध्यम से सनातन बोर्ड समाज में एक ऐसी जागृति फैलाना चाहता है जो युगों तक जीवंत रहे — धर्म के प्रति श्रद्धा, संस्कृति के प्रति गर्व और जीवन के प्रति उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण।
सनातन बोर्ड की संरचना अत्यंत सुदृढ़, सुसंगत और धर्म-सम्मत आधार पर निर्मित की गई है, ताकि संगठन के प्रत्येक स्तर पर विचार, कर्म और दिशा में एकरूपता और प्रभावशीलता बनी रहे। इस संरचना में आध्यात्मिक नेतृत्व, वैदिक मार्गदर्शन, प्रशासनिक संचालन और क्षेत्रीय क्रियान्वयन — सभी आयामों का समावेश है।
मुख्य संरक्षक
सनातन बोर्ड के शीर्ष पर शंकराचार्य, आध्यात्मिक गुरु, धर्माचार्य को प्रतिष्ठित किया जाता है, जो सनातन बोर्ड के आध्यात्मिक मार्गदर्शक होते हैं। उनका कार्य संगठन की मूल आत्मा को संरक्षित रखते हुए सभी गतिविधियों को धर्म, मर्यादा और सनातन मूल्यों की दिशा में आगे बढ़ाना होता है। यह पद केवल नाममात्र नहीं, बल्कि पूरी संस्था के लिए एक प्रेरणास्रोत और निर्णायक प्रकाशस्तंभ की भूमिका निभाता है।
संस्थापक मंडल
इस मंडल में वे विद्वान, धर्मसेवी, सनातन धर्म के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति शामिल होते हैं जिन्होंने इस सनातन बोर्ड की कल्पना, स्थापना और आरंभिक स्वरूप देने में योगदान दिया। ये संस्थापक सदस्य संस्था की मूल भावना के संरक्षक हैं, जिनकी दृष्टि, उद्देश्य और प्रेरणा पूरे संगठन में सजीव रहती है। यह मंडल विचारधारा की शुद्धता और दिशा की स्थिरता सुनिश्चित करता है।
कार्यकारिणी समिति
इस समिति में अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष और संयोजक सहित अन्य उत्तरदायित्वधारी सदस्य होते हैं।
अध्यक्ष -सनातन बोर्ड का प्रतिनिधित्व करते हैं और नीति-निर्धारण की प्रमुख जिम्मेदारी निभाते हैं।
सचिव- सभी प्रशासनिक कार्यों, दस्तावेज़ों और योजना क्रियान्वयन की देखरेख करते हैं।
कोषाध्यक्ष- संस्था की वित्तीय पारदर्शिता और धन के सदुपयोग हेतु उत्तरदायी होते हैं।
संयोजक- सभी विभागों, समितियों और क्षेत्रीय इकाइयों के बीच समन्वय बनाए रखने का कार्य करते हैं।
यह कार्यकारिणी संस्था की रीढ़ होती है जो संकल्पों को योजनाओं और योजनाओं को क्रियान्वयन में बदलने का कार्य करती है।
धर्म-परामर्श मंडल
यह एक विशेष मंडल होता है जिसमें वेदज्ञ विद्वान, संत-महात्मा, शास्त्राचार्य और आध्यात्मिक आचार्य शामिल होते हैं। इनका कार्य संस्था को वैदिक शास्त्रों, धर्मशास्त्रों और परंपरागत सिद्धांतों के अनुरूप मार्गदर्शन देना है। कोई भी नीतिगत निर्णय, धार्मिक आयोजन या वैचारिक अभिव्यक्ति इनके विचार-विमर्श और परामर्श के पश्चात ही आगे बढ़ाई जाती है, जिससे संगठन सदैव धर्म-मार्ग पर स्थिर रहे।
जिला / क्षेत्रीय समितियाँ
देशभर के विभिन्न जिलों, प्रांतों और नगरों में क्षेत्रीय समितियाँ गठित की जाती हैं जो संस्था के कार्यों को स्थानीय स्तर पर क्रियान्वित करती हैं। ये समितियाँ जन-जागरूकता अभियान, सदस्यता विस्तार, धार्मिक आयोजन, साधना केंद्रों की स्थापना, सेवा-कार्य और संस्कृति संवर्धन जैसे कार्यों को ज़मीनी स्तर पर संपन्न करती हैं। इन समितियों के माध्यम से ही संस्था हर गाँव, हर नगर तक अपनी उपस्थिति और प्रभाव को विस्तार देती है। ये समितियाँ स्थानीय समस्याओं, आवश्यकताओं और विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए कार्य करती हैं, जिससे संगठन में लोकोन्मुखता और वास्तविकता का समावेश होता है।
सनातन बोर्ड की कार्यप्रणाली बहुआयामी है, जिसका उद्देश्य केवल धार्मिक आयोजनों तक सीमित नहीं, बल्कि एक समग्र सनातन समाज के निर्माण हेतु शिक्षा, सेवा, साधना और संरक्षण को जीवन का अभिन्न अंग बनाना है। इस कार्यप्रणाली के मुख्य स्तंभ निम्नलिखित हैं:
शिक्षा
सनातन ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने हेतु संस्था गुरुकुलों, संस्कार केंद्रों और ऑनलाइन वेद-गीता कक्षाओं का संचालन करती है। इन केंद्रों में बालकों को केवल पाठ्य-पुस्तक आधारित ज्ञान ही नहीं, अपितु चरित्र, संयम, श्रद्धा, संस्कृति और आत्मबोध का शिक्षण भी दिया जाता है। ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से वेद, गीता, उपनिषद, रामायण, योग और संस्कृत जैसे विषयों को सरल भाषा में जनसामान्य तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है — जिससे आज की पीढ़ी भी इस महान ज्ञानधारा से जुड़ सके।
धार्मिक गतिविधियाँ
संस्था मंदिर प्रबंधन, नियमित यज्ञ-हवन, व्रत-पर्व आयोजनों और तीर्थयात्राओं के समन्वय द्वारा धर्म के प्रत्यक्ष अनुभव को समाज में स्थापित करती है। मंदिरों में पूजन, आरती, कथा, जप-तप, प्रवचन और विशेष अनुष्ठान नियमित रूप से संपन्न कराए जाते हैं। संस्था यह सुनिश्चित करती है कि हर मंदिर का संचालन श्रद्धा, शुचिता और वैदिक मर्यादा के अनुरूप हो।
आध्यात्मिक कार्यक्रम
ध्यान, योग, संकीर्तन, साधना और आत्मबोध को केंद्र में रखकर योग शिविर, ध्यान सत्र और साप्ताहिक भजन-संकीर्तन कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन आयोजनों का उद्देश्य मानसिक शांति, आंतरिक संतुलन और आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति कराना है। सभी कार्यक्रम अनुभवी योगाचार्यों, साधकों और संतों के सान्निध्य में होते हैं, जिससे साधकों को वास्तविक मार्गदर्शन प्राप्त हो सके।
सेवा कार्य
सनातन बोर्ड समाज के उपेक्षित वर्गों के प्रति संवेदनशील और कर्मशील है। गौशालाओं का संचालन, वृद्धाश्रम व अनाथालयों का सहयोग, मुफ़्त चिकित्सा शिविरों का आयोजन, प्राकृतिक आपदाओं में सहायता जैसे सेवा कार्य संस्था की प्रमुख गतिविधियों में शामिल हैं। सेवा को धर्म का सर्वोच्च रूप मानते हुए, संस्था समाज के हर जरूरतमंद के लिए समर्पित है।
प्रसार
धार्मिक और वैदिक मूल्यों का व्यापक प्रचार-प्रसार संस्था की प्राथमिकता है। इसके लिए डिजिटल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म, मासिक पत्रिकाएँ, ऑनलाइन वेबिनार, सार्वजनिक व्याख्यान, यूट्यूब चैनल और धार्मिक साहित्य के माध्यम से संदेश को जन-जन तक पहुँचाया जा रहा है। विशेष रूप से युवाओं को जोड़ने हेतु सोशल मीडिया अभियान और संवादमूलक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
संरक्षण कार्य
सनातन परंपरा के प्रतीकों — प्राचीन धर्मस्थलों, वेद-शास्त्र ग्रंथों, आचार्य परंपरा और लोक-परंपराओं का संरक्षण संस्था का नैतिक दायित्व है। उपेक्षित मंदिरों का पुनरुद्धार, लुप्तप्राय ग्रंथों का डिजिटलीकरण, परंपरागत पूजा विधियों का दस्तावेजीकरण और संतों की वाणी का संकलन — इन सभी प्रयासों से सनातन की परंपरा को युगों तक जीवित रखने का कार्य किया जा रहा है।
पुजारियों व धर्मसेवकों के लिए मानदेय योजना
संस्था यह मानती है कि मंदिरों में सेवारत पुजारीगण, आचार्य, धर्माचार्य, सेवक भी समाज के प्रति पूर्ण समर्पित हैं। अतः उनके लिए मानदेय योजना लागू की जाती है जिससे उनकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और वे आर्थिक चिंता से मुक्त होकर पूर्णतः धर्मसेवा में रत रह सकें। प्रत्येक मंदिर या केंद्र के अनुसार यह मानदेय संस्था द्वारा निर्धारित रूप में समय-समय पर प्रदान किया जाएगा।
वित्तीय पारदर्शिता और उपयोग
सनातन बोर्ड द्वारा एकत्र किया गया प्रत्येक दान, चंदा, सहयोग या संसाधन केवल धार्मिक, आध्यात्मिक या सामाजिक कार्यों में ही व्यय किया जाएगा। संस्था का यह स्पष्ट सिद्धांत है कि एक भी रुपया किसी व्यक्तिगत लाभ, व्यर्थ आयोजन या भौतिक प्रदर्शन में नहीं खर्च होगा। प्रत्येक खर्च, सहयोग, आयोजन और निर्माण का पूरा हिसाब संस्था के हर सदस्य को उपलब्ध रहेगा।
सदस्य अधिकार
सनातन बोर्ड का कोई भी पंजीकृत सदस्य इस संस्था के कार्यों, आय-व्यय, योजनाओं और आयोजनों का विवरण किसी भी समय पूछने का अधिकारी होगा। यह संगठन जन-संचालित, पारदर्शी और जवाबदेह है। प्रत्येक कार्य का लेखा-जोखा ऑनलाइन माध्यम से भी सदस्यता पोर्टल के माध्यम से उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे हर सहयोगकर्ता आत्मविश्वास के साथ संस्था से जुड़ा रहे।
सनातन बोर्ड का मूल उद्देश्य केवल धार्मिक आयोजनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन की संपूर्ण यात्रा को धर्म, सेवा, ज्ञान और संस्कारों से प्रकाशित करने की एक गहन साधना है। यह संगठन सनातन सिद्धांतों को केवल संरक्षित करने का नहीं, बल्कि उन्हें जीवन में उतारने और समाज में पुनः स्थापित करने का सशक्त अभियान है। उसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:
सनातन सिद्धांतों का संरक्षण
सनातन धर्म के मूल स्तंभ — सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, तप, सेवा, श्रद्धा, आत्मज्ञान और ईश्वरभक्ति — केवल ग्रंथों तक सीमित न रहें, बल्कि समाज के प्रत्येक स्तर पर व्यावहारिक रूप से जीवित रहें, यही संस्था की मूल भावना है। वेदों, उपनिषदों, गीता, रामायण और पुराणों में वर्णित जीवन सिद्धांतों को आधुनिक युग में पुनः प्रासंगिक बनाना हमारा परम कर्तव्य है। यह संरक्षण केवल भवनों और ग्रंथों का नहीं, बल्कि उन मूल्यों का है जो मानवता के चरित्र का निर्माण करते हैं।
संस्कारयुक्त पीढ़ी का निर्माण
हर युग की शक्ति उसकी युवा पीढ़ी होती है। सनातन बोर्ड का मानना है कि यदि बाल्यावस्था से ही बच्चों में सदाचार, सेवा, आत्मसंयम, सत्यनिष्ठा और धर्मभाव का बीजारोपण किया जाए, तो भविष्य का समाज स्वाभाविक रूप से धार्मिक, नैतिक और शांतिपूर्ण बनेगा। संस्था संस्कार केंद्रों, गुरुकुलों और वैदिक शिक्षा माध्यमों के द्वारा ऐसी पीढ़ी तैयार करना चाहती है जो विज्ञान में दक्ष हो, परंतु संस्कृति से विमुख न हो। एक ऐसा भारत जिसमें आधुनिकता और आध्यात्मिकता साथ-साथ चलें।
आध्यात्मिक केंद्रों की स्थापना
हर नगर, हर गाँव में ऐसे केंद्रों की आवश्यकता है जो केवल पूजा या आयोजन का स्थान न होकर आत्मज्ञान, साधना, योग, ध्यान और धर्मचर्चा के जीवंत केंद्र हों। सनातन बोर्ड पूरे भारतवर्ष में और भारत से बाहर भी ऐसे धार्मिक चेतना केंद्रों की स्थापना कर रहा है, जहाँ न केवल शरीर को बल मिले बल्कि आत्मा को भी शांति और दिशा मिले। ये केंद्र समाज को जोड़ने, संदेह को मिटाने और जीवन को अर्थ देने वाले केंद्र होंगे।
धार्मिक साहित्य का प्रकाशन
ज्ञान का विस्तार तभी संभव है जब वह सही रूप में, सरल भाषा में और सुबोध शैली में जनसामान्य तक पहुँचे। सनातन बोर्ड वेद, उपनिषद, गीता, धर्मशास्त्र, संतवाणी और आचार्य परंपरा से संबंधित साहित्य का प्रकाशन करता है, जिसमें आधुनिक युवा, विद्यार्थी और सामान्य गृहस्थ भी सहजता से धर्म को समझ सकें। पत्रिकाएँ, पुस्तकें, बाल-संस्कार ग्रंथ, ऑडियो-बुक्स और डिजिटल फॉर्मेट में यह सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी।
सेवा आधारित धर्म
सनातन धर्म का वास्तविक स्वरूप सेवा, करुणा और परोपकार में निहित है। केवल पूजा-पाठ ही धर्म नहीं, बल्कि भूखे को भोजन, अशक्त को सहारा, रोगी को चिकित्सा, पीड़ित को राहत देना भी धर्म का अभिन्न अंग है। सनातन बोर्ड हर धार्मिक गतिविधि को सेवा से जोड़ने का प्रयास करता है — जिससे समाज केवल भक्त न बने, बल्कि कर्तव्यनिष्ठ धर्मसेवक बने। हर मंदिर, हर आयोजन और हर अभियान में सेवा को केंद्र में रखा जाएगा।
सनातन धर्म केवल पूजा-पद्धति या परंपराओं का संग्रह नहीं है — यह जीवन का विज्ञान है, जो आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा को धर्म, सेवा, ज्ञान और कर्म के माध्यम से संभव बनाता है। सनातन बोर्ड का उद्देश्य है इस दिव्य परंपरा को जन-जन तक ले जाना — न केवल ग्रंथों के रूप में, बल्कि जीवन के अनुभव के रूप में।
इस संस्था से जुड़ने से व्यक्ति को केवल धार्मिक लाभ ही नहीं, बल्कि चारित्रिक, पारिवारिक, मानसिक, सामाजिक और आत्मिक उत्थान के मार्ग भी प्राप्त होते हैं। इस संगठन के माध्यम से प्राप्त होने वाले प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
धार्मिक और नैतिक जागरूकता में वृद्धि
जब व्यक्ति शास्त्रों की ओर लौटता है, संतों के वचनों को सुनता है, यज्ञ-हवन करता है, सत्संग में बैठता है — तो वह न केवल अपने धर्म को समझता है, बल्कि अपने भीतर के सद्गुणों को भी जाग्रत करता है। धर्म का ज्ञान केवल पूजा तक सीमित नहीं, यह सत्य, संयम, करुणा और विवेक की ओर ले जाता है। संस्था द्वारा आयोजित वेदांत संवाद, धर्मशास्त्र प्रशिक्षण, नैतिक जीवन चर्चा आदि से व्यक्ति के भीतर नैतिक जागृति उत्पन्न होती है।
बच्चों और युवाओं में चारित्रिक विकास
आज की शिक्षा यदि ज्ञान देती है, तो सनातन संस्था चरित्र देती है। हमारे संस्कार केंद्र, वैदिक कक्षाएँ, और गुरुकुल गतिविधियाँ युवाओं में सत्यनिष्ठा, आत्मसंयम, कर्तव्यबोध, मातृ-पितृ सेवा और राष्ट्र के प्रति श्रद्धा का भाव उत्पन्न करती हैं। यह पीढ़ी केवल प्रतिस्पर्धी नहीं, संवेदनशील और नीतियुक्त नागरिक बन सके — यही संस्था का प्रयास है।
तनावमुक्त, संयमित और संतुलित जीवनशैली का प्रसार
योग, ध्यान, मंत्र-जप, साधना और संतसंग — ये केवल धार्मिक क्रियाएँ नहीं हैं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन के अद्वितीय उपाय हैं। संस्था द्वारा चलाए जा रहे ध्यान सत्र, योग शिविर और आत्मचिंतन कार्यशालाओं से व्यक्ति अपने जीवन के तनावों से मुक्त होकर एक शांत, स्थिर और सकारात्मक जीवन शैली अपना सकता है।
परिवारों में शांति और एकता का वातावरण
सनातन धर्म केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं — यह परिवार को एक आध्यात्मिक इकाई मानता है। जब परिवार के सभी सदस्य धर्म, सेवा और संस्कार से जुड़े होते हैं, तो वहाँ कलह की जगह सहयोग, द्वेष की जगह स्नेह, और अपेक्षा की जगह आदर उत्पन्न होता है। संस्था का प्रयास है कि हर घर में गीता, रामायण, यज्ञ और संस्कार की गूंज हो।
समाज में सेवा और सहयोग की भावना का विकास
सनातन धर्म का मूल संदेश है — "परहित सरिस धर्म नहिं भाई।" संस्था के माध्यम से व्यक्ति स्वयं केंद्र में नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज को केंद्र में रखता है। सेवा के माध्यम से आत्मसंतोष, समाज के प्रति उत्तरदायित्व और सहयोग की भावना का जागरण होता है। संस्था द्वारा चलाए जा रहे गौसेवा केंद्र, अन्न क्षेत्र, चिकित्सा सेवा, वृद्धाश्रम सहयोग जैसे कार्यक्रमों से समाज के प्रत्येक वर्ग तक करुणा पहुँचती है।
सनातन भारत की पुनः प्रतिष्ठा
आज भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है, परंतु इसकी आत्मा सनातन धर्म है। सनातन बोर्ड भारत को केवल आर्थिक नहीं, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहता है। जब भारत का युवा अपने धर्म से जुड़ता है, विदेशों में रहने वाले भारतीय पुनः अपनी जड़ों को पहचानते हैं, और समाज धर्म के मार्ग पर चलने लगता है — तब एक नवभारत का निर्माण होता है, जो विकास के साथ-साथ विवेक से भी युक्त होता है।
“सनातन धर्म कोई बीती हुई चीज़ नहीं, यह आज भी जीवंत है — यही हमारा अस्तित्व है।”
यह वाक्य केवल एक उद्घोष नहीं, बल्कि हमारी आत्मा की पुकार है। सनातन धर्म की यह ज्वाला बुझी नहीं है — यह अभी भी जीवित है, और उसे फिर से प्रज्वलित करने का संकल्प सनातन बोर्ड लेकर खड़ा है।
"श्रीराम जन्मभूमि सनातन विश्वविद्यालय"* की स्थापना का संकल्प सनातन धर्म की उस चिरकालिक चेतना को साक्षात मूर्त रूप देना है जो मानवता, ज्ञान, तपस्या और संस्कृति का मूल स्तंभ रही है। सनातन बोर्ड द्वारा प्रस्तावित यह विश्वविद्यालय अयोध्या धाम की पुण्यभूमि पर 101 एकड़ भूमि में विकसित किया जाएगा, जहाँ प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ — वह स्थल जो केवल एक ऐतिहासिक स्मृति नहीं, बल्कि करोड़ों सनातनी जनों की श्रद्धा, आस्था और आत्मगौरव का प्रतीक है। यह विश्वविद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा, धर्म, दर्शन, वेद, आयुर्वेद, योग, ज्योतिष, वास्तु, तंत्र और लौकिक विज्ञान को एकीकृत रूप में उच्च शिक्षा के स्तर पर प्रस्तुत करेगा। आधुनिक अकादमिक मानकों के अनुरूप शोध, नवाचार और वैश्विक संवाद को प्रोत्साहित करते हुए यह संस्थान भारत के प्राचीन ज्ञानकोश को नई पीढ़ी तक पहुँचा कर उन्हें गर्व और स्वाभिमान से भरने का कार्य करेगा। विश्वविद्यालय में गुरुकुल प्रणाली की आत्मा को संरक्षित रखते हुए डिजिटल टेक्नोलॉजी, AI, पर्यावरण विज्ञान, कृषि अनुसंधान और वैश्विक नीति अध्ययन जैसे विषय भी शामिल किए जाएंगे, जिससे विद्यार्थी केवल सनातन के ज्ञाता ही नहीं, आधुनिक भारत के निर्माता भी बनें। यहाँ धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक नेतृत्व, सांस्कृतिक संरक्षण, राष्ट्र निर्माण और विश्व कल्याण की भावना को भी केंद्रीय महत्व मिलेगा। विशेष रूप से चिकित्सा शिक्षा के अंतर्गत आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और योग चिकित्सा के उच्च स्तरीय पाठ्यक्रम संचालित होंगे, जिससे प्राचीन भारतीय चिकित्सा को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक नई दिशा दी जा सकेगी। यह विश्वविद्यालय केवल एक शिक्षण संस्था नहीं, बल्कि एक आंदोलन है — जो भारत की आत्मा को उसके मूल स्वरूप में प्रतिष्ठित करने का यज्ञ करेगा। इसके प्रत्येक भवन, पाठ्यक्रम, गुरुकुल, शोध केंद्र और संस्कारधाम में श्रीराम के आदर्शों की झलक होगी — मर्यादा, न्याय, सेवा और समर्पण। श्रीराम जन्मभूमि सनातन विश्वविद्यालय का उद्देश्य केवल डिग्री प्रदान करना नहीं है, बल्कि ऐसे चरित्रवान, संस्कारित, जागरूक और उत्तरदायी नागरिकों को निर्माण करना है जो संपूर्ण मानवता के लिए लाभकारी बन सकें। वर्तमान में इसका प्रस्ताव सनातन बोर्ड द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार एवं सम्बंधित संस्थाओं को भेजा जा चुका है तथा भूमि चिन्हांकन, योजनाबद्ध निर्माण और वैश्विक सहयोग हेतु तैयारी प्रारंभ हो चुकी है। यह विश्वविद्यालय अयोध्या को केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि वैश्विक वैदिक शिक्षा के केन्द्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है — जहाँ शिक्षा, साधना और संस्कृति का त्रिवेणी संगम होगा। संपूर्ण सनातन समाज से आग्रह है कि इस दिव्य संकल्प को साकार करने में तन, मन, धन से सहभागी बनें और इसे विश्वपटल पर सनातन वैभव का अधिष्ठान बनाएं।