अध्यक्ष
सनातन धर्म केवल एक परंपरा नहीं, यह जीवन के हर क्षण को दिव्यता से जोड़ने वाली साधना है। यह हमें सिखाता है कि सत्य की राह चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, उस पर चलना ही धर्म है। आज जब समाज भटकाव और भ्रम की स्थिति में है, तब हमें सनातन के मूलभूत सिद्धांत — सत्य, अहिंसा, सेवा और सहिष्णुता — को जन-जन तक पहुँचाना है। हमारी सोच यह है कि धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि व्यवहार, कर्तव्य और करुणा में भी परिलक्षित हो। हर वह कार्य जो किसी ज़रूरतमंद के लिए किया जाए — वही सच्चा यज्ञ है। हमारा उद्देश्य है कि हर व्यक्ति को धर्म से जोड़ें, "पर बिना भेदभाव के — भाषा, जाति या स्थिति से ऊपर उठकर। यही सनातन है — सार्वभौमिक, सर्वग्राही और सदा प्रासंगिक।"
“धर्मो रक्षति रक्षितः, धर्म ही जीवन का सार है।
जहाँ धर्म है, वहीं विजय है — वहीं सच्चा संसार है॥”
उपाध्यक्ष
“एक धर्मप्रेमी समाज तभी सशक्त होता है जब उसमें महिलाओं का मान-सम्मान हो और हर वर्ग की सेवा हो। हम न केवल धर्म के प्रचार में, बल्कि गरीबों, विधवाओं और वंचितों की मदद में भी आगे हैं। सेवा और संवेदना ही हमारी असली शक्ति है।”
श्लोक:
"नारीपूजा सेवा च, धर्मरक्षा दयापरः।
विप्रवृद्धदीनानां, रक्षणं सनातनम्॥"
महा सचिव
“युवा शक्ति ही भविष्य का निर्माण करती है — परंतु उसे केवल धर्म नहीं, मानवता और कर्तव्यबोध से भी जोड़ना होगा। हमारा प्रयास है कि युवाओं को धर्म, सेवा और स्वाभिमान के साथ जोड़ा जाए — ताकि वे समाज के लिए प्रेरक बनें।”
श्लोक:
"युवा धर्मे स्थितो नित्यं, सेवायां च निरत्ययः।
स्वाभिमानसमायुक्तः, स एव स्यात् समाजपः॥"
सचिव
“हम धार्मिक आयोजनों के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और सहायता के कार्यों में भी आगे हैं।
सचिव होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि हर कार्य में पारदर्शिता हो, और हर जरूरतमंद तक हमारी पहुंच हो।”"यत्र धर्मः स सेवा च, शिक्षारोग्यसुखावहा।
कर्तव्यं निर्मलं यत्र, तत्र सिद्धिर्न संशयः॥"
सह-सचिव
मेरे विचार में सनातन धर्म की रक्षा केवल ग्रंथो से नहीं कर्मों से होती है और मेरा संकल्प है धर्म को कर्म में बदलने का धर्म का वास्तविक रूप तभी प्रकट होता है जब वह मानवता प्रकृति और जीव जंतु की सेवा में लगे मेरी यह यात्रा धर्म के प्रचार से शुरू होकर समाज सेवा वृक्षारोपण जल संरक्षण पशु पक्षियों की देखभाल और हर जरूरतमंद की सहायता तक जाती है
"धर्मो रक्षति रक्षतः सततं सेवया युतः।
मानवस्य हितं यत्र तत्र धर्मः स जीवति॥"
कोषाध्यक्ष
सनातन सेवा परिषद् की सेवा और धर्म भावना को ध्यान में रखते हुए मेरा यह मत है कि दान की राशि का उपयोग केवल धार्मिक कार्यों तक सीमित न रहकर समाज की भलाई के लिए भी किया जाए। यह धन गरीब बच्चों की पढ़ाई, जरूरतमंदों के इलाज और दवाइयों में लगाया जाए। निर्धन महिलाओं और बच्चों को साड़ी, ड्रेस और जरूरी वस्त्र उपलब्ध कराए जाएं। साथ ही बीमार और बेसहारा जानवरों की सेवा भी की जाए, उन्हें चारा, दवा और देखभाल दी जाए। इसके अलावा, हम सब प्रकृति की रक्षा के लिए पेड़ लगाएं, स्वच्छता रखें और जल संरक्षण जैसे कार्यों को बढ़ावा दें। सभी सदस्य धार्मिक आयोजनों और बैठकों में एक जैसे पारंपरिक वस्त्र पहनें, जिससे हमारी एकता और सनातन पहचान बनी रहे।
"धर्मेण सह सेवा च, दानं लोकहिताय यत्।
न केवलं यज्ञकर्म, जनसेवा हि पुण्यदा॥"
सदस्य
“सनातन धर्म का मूल है – ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’। मैं इस संस्था का एक सिपाही बनकर न केवल धर्म प्रचार, बल्कि गरीबों की मदद, रक्तदान, गौसेवा और स्वच्छता जैसे कार्यों में भी समर्पित हूँ। यह मेरा धर्म भी है और जिम्मेदारी भी।”
“परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम्।
सर्वे भवन्तु सुखिनः — यही धर्म का सारम्॥”